काशी खंड के 61 वें अध्याय के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने राजा दिवोदास का अपने राज्य से उच्चाटन कर दिया तो उन्होंने स्वयं को पादोदक तीर्थ में आदि केशव के रूप में स्थापित किया।
आदि का अर्थ है “सूत्रपात” तथा केशव शब्द विष्णु का परिचायक है। यह वाराणसी में स्थित सबसे पुराने मंदिर में से एक माना जाता है और संभवतः काशी में भगवान विष्णु का प्रथम मंदिर माना जाता है। इस मंदिर की वास्तुकला सबसे आकर्षक है और भारतीय शैली में निर्मित मंदिरों से अलग है। इस मंदिर में आदि केशव-संगमेश्वर लिंग भी स्थापित है, जो चार मुख वाले लिंग के रूप में स्थापित है, जिसे आदि केशव द्वारा स्थापित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान विष्णु के आदि केशव रूप की आराधना करता है उसे अपने जीवन में सभी दुखों से छुटकारा मिलता है तथा उसके जीवन में सिर्फ खुशहाली ही वास करती है
यह मंदिर पूजा के लिए प्रातः 06.00 से दोपहर 12.00 बजे तथा सायं 04.00 से रात्री 10.00 बजे तक खुला रहता है। हालांकि समय थोड़ा ऊपर-नीचे हो सकता है।
आदि केशव A-37/51, आदि केशव घाट पर स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन सुविधा उपलब्ध है।