काशी खंड की एक कथा के अनुसार (काशी विष्णु यात्रा में उल्लेख किया गया है) जब भगवान विष्णु ने राजा दिवोदास का अपने राज्य से उच्चाटन कर दिया तो उन्होंने स्वयं को पादोदक तीर्थ में आदि केशव के रूप में स्थापित किया। तत्पश्चात, भगवान विष्णु जब पंचनद तीर्थ पर पहुँचे, तो वे काशी की महिमा से अभिभावित हो गए। तभी उन्होनें पंचनद तीर्थ पर एक कृशकाय ऋषि को तपस्या करते हुए देखा। भगवान विष्णु अपने दिव्य रूप में उस ऋषि के समक्ष प्रकट हुए जिसका नाम अग्निबिंदु था। ऋषि अग्निबिंदु भगवान विष्णु को अपने समक्ष देख अति आनंदित हो गए तथा उन्होनें भगवान विष्णु को प्रणाम किया और उनकी स्तुति करने लगे। भगवान विष्णु ऋषि से प्रसन्न हुए और उन्हें किसी दिव्य वरदान लेने को कहा तब उन्होनें यह माँगा कि भगवान विष्णु हमेशा पंचनद तीर्थ के आस पास उपलब्ध रहें। भगवान विष्णु ने तदनुसार ऋषि को वरदान प्रदान किया और स्वयं बिन्दु माधव के रूप में पंचनद तीर्थ में स्थापित हो गए। उनकी उपस्थिति से, तीर्थ अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा वह भक्त जो इस तीर्थ में स्नान करते हैं उन्हें धन एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और उन्हे सभी पापों से छुटकारा मिलता है तथा मोक्ष प्राप्ति होता है।
इसके उपरांत ऋषि हाथ जोड़कर शांत खड़े हो गए। जब भगवान विष्णु ने उनसे वरदान लेने को कहा तब उन्होनें यह माँगा कि भगवान विष्णु हमेशा पंचनद तीर्थ के आस पास उपलब्ध रहें।
भगवान विष्णु ने तदनुसार ऋषि को वरदान प्रदान किया तथा आगे कहा कि काशी एक पुण्य क्षेत्र है तथा भक्तजन काशी में आकर विभिन्न सिद्धियों को प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही भगवान विष्णु ने यह भी कहा कि काशी में वास करने वाले सुरक्षित रहते हैं यहाँ तक कि महा प्रलय भी काशी को नष्ट नहीं कर सकती।
अग्निबिंदु यह सुनकर अत्यंत खुश हुए तथा उन्होनें भगवान विष्णु से एक वरदान माँगा। ऋषि ने भगवान विष्णु से यह वरदान माँगा कि वह पंचनद तीर्थ के आसपास ऋषि के नाम से जाने जाएं। साथ ही जो भी भक्त पंचनद तीर्थ में स्नान करेगा उसकी चाहे कहीं भी मृत्यु हो पर उसे मोक्ष प्राप्त होगा। इसके अलावा पंचनद तीर्थ में स्नान करने के उपरांत भगवान विष्णु की प्रार्थना करने वाले भक्तों को धन एवं समृद्धि की प्राप्ति होगी।
भगवान विष्णु ने ऋषि की मनोकमना पूरी कर दी तथा तब से पंचनद तीर्थ पर बिन्दु माधव नाम से जाने जाते हैं। उनकी उपस्थिति से, तीर्थ अत्यंत पवित्र माना जाता है तथा वह भक्त जो इस तीर्थ में स्नान करते हैं उन्हें धन एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है।
यह तीर्थ जिसमें सभी पापों को मुक्त करने की क्षमता है उसे बिन्दु तीर्थ नाम से जाना जाता है। कार्तिक माह में पंचनद तीर्थ में स्नान कर बिन्दु माधव की आराधना करने से व्यक्ति को अपने पापों से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि स्वयं भगवान विश्वेश्वर कार्तिक माह में इस तीर्थ में स्नान करते हैं।
ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने ऋषि अग्निबिंदु को वरदान देते समय यह कहा था कि सतयुग में उन्हें आदि माधव, त्रेता युग में उन्हें आनंद माधव, द्वापर युग में श्री माधव एवं कलयुग में उन्हें बिन्दु माधव नाम से जाना जाएगा।
यह मंदिर पूजा के लिए प्रातः04.00 से रात्री 08.00 बजे तक खुलता है। यहाँ प्रातः 04.00 बजे मंगला आरती, प्रातः 08.00 बजे शृंगार आरती तथा रात्रि 08.00 बजे शयन आरती होती है। कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी जो प्रबोधिनी एकादशी नाम से जानी जाती है यहा पूजा करने का विशेष महत्व है।
बिन्दु माधव K.22/37, पंच गंगा घाट पर स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन उपलब्ध है।