यह उत्तर प्रदेश के प्रसिद्ध पवित्र स्थानों में से एक है। विंध्य पर्वत के मध्य मिर्जापुर के निकट पवित्र नदी गंगा के तट पर, यह मंदिर स्थित है। देवी विंध्यावासिनी की शक्ति पीठ दिव्य शक्ति और आशीर्वाद का निवास स्थान है। इसके अतिरिक्त, अन्य बहुत से मंदिर है, जो मंदिर के परिसर में स्थित हैं, जैसे अष्टभुजा मंदिर एवं माता कालीखोह मंदिर। इन मंदिरों एवं इनकी मान्यताओं के कारण, पूरे वर्ष यहां भक्तों की भीड़ रहती है। यदि आप नवरात्री अप्रैल एवं अक्टूबर के समय मंदिर के दर्शन करने जाते हैं, आप इस खास अवसर का भव्य समारोह देख सकते हैं।
यह मंदिर भगवान हनुमान को समर्पित है। मंदिर वाराणसी के दक्षिणी भाग में स्थित है। दुर्गा मण्डी एवं नए विश्वनाथ मंदिर बीएचयू, वाराणसी के बीच घूमते समय, इस मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह मंदिर की स्थापना गोस्वामी तुलसीदास (रामचरितमानस के लेखक) द्वारा स्थापित किया गया था। प्रत्येक वर्ष, हनुमान जयंती के अवसर पर दुर्गा कुण्ड से संकट मोचन मंदिर तक शोभा यात्रा निकाली जाती है जिसके बाद इनकी जयंती मनायी जाती है। यदि मंदिर की मान्यताएं सच हैं तो कोई भी व्यक्ति अपने सभी दुखों अर्थात संकटों से मुक्ति पा सकता है एवं मंदिर में पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं भी पूर्ण होती हैं। भगवान हनुमान की पूजा का सबसे उचित दिन मंगलवार एवं शनीवार माना जाता है।
समय: सुबह 5:00 बजे से रात्री 9:00 बजे तक
आरती का समय: सुबह आरती 4 बजे एवं संध्या आरती 9 बजे
यह मंदिर भगवान राम (राजा दशरथ के पुत्र) को समर्पित है एवं बनारसी परिवार द्वारा इसका निर्माण कराया गया। यह मंदिर तुलसी बिड़ला मानस मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, जो वाराणसी के दुर्गा मंदिर के समीप स्थित है। मंदिर की स्थापना वर्ष 1964 में की गई थी, जो सफेद मार्बल से युक्त है। परिसर के भीतर एक पार्क भी स्थित है, जिसे आकर्षण का केंद्र माना जाता है। भगवान राम के साथ, सीता, लक्ष्मण एवं हनुमान की मूर्तियां भी स्थापित हैं, जहां पर भक्तगण प्रार्थना करते हैं। उक्त मान्यता के अतिरिक्त यह भी माना जाता है कि गोस्वामी तुलसी दास ने इसी स्थान पर रामचरितमानस लिखा था। रामचरितमानस के श्लोक मंदिर की दीवारों पर अंकित किए गए हैं।
मंदिर खुलने का समय: सुबह 5:30 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक एवं दोपहर 3:30 बजे से रात 09:00 बजे तक
आरती का समय: सुबह 6:00 बजे एवं शाम 4:00 बजे
मंदिर के नाम से विदित होता है कि यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। दारानगर से कालभैरव मंदिर की ओर जाते समय मृत्युंजय महादेव मंदिर के दर्शन किए जा सकते हैं।
लोगों की यह मान्यता है कि इस मंदिर में प्रार्थना करने से सभी दुखों का हरण होता है। मंदिर में स्थित कुएँ के विषय में मान्यता है कि कुएँ के जल से स्नान करने से समस्त रोग समाप्त हो जाते हैं।
समय: सुबह 04:00 बजे से दोपहर 12:00 बजे तक
आरती का समय: सुबह 5:30 बजे, शाम 6:30 बजे and रात्री 11:30 बजे
यह मंदिर अद्वितीय है क्योंकि यह मंदिर किसी देवी या देवता को समर्पित नहीं है, वरन् यह भारत माता को समर्पित है। मंदिर से सम्बंधित रोचक तथ्य यह है कि इस मंदिर में भारत माता की प्रतिमा स्थापित नहीं है, अपितु यहां पर किसी प्रकार की मूर्ति या प्रतिमा के स्थान पर, भारत का मानचित्र पत्थर से निर्मित है। यह मंदिर का उद्घाटन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा किया गया था। मानचित्र निर्माण में प्रयुक्त पत्थर मकरान से लाये गए थे। मंदिर अलग-अलग पांच स्तंभों (पिलर) पर स्थापित है। यह पांच स्तंभ सृष्टि के मूल तत्वों का प्रतिनिधत्व करते हैं अर्थात पृथ्वी, वायु, अग्नि, जल एवं आकाश।
वाराणसी में इस मंदिर की स्थिति कंदवा क्षेत्र में है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर के विषय में मान्यता है कि मंदिर में शिवलिंग की स्थापना कर्दम ऋषि के द्वारा की गयी थी। यह मंदिर प्रसिद्ध पंचक्रोशी यात्रा का प्रथम पड़ाव भी है। ऐतिहासिक मंदिर स्थापत्य की दृष्टि से भी मंदिर का विशेष महत्व है। गहड़वाल राजवंश (11-12 वीं शती ) के काल में निर्मित यह मंदिर उत्तर भारतीय नागर शैली (मंदिर निर्माण शैली ) का जीवंत उदाहरण है।