हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार, देवी दुर्गा के नौ स्वरूप हैं। नवरात्रि में इन स्वरूपों की विशेष पूजा होती है। नव रात्रि का अर्थ ही है नौ रातें जिनमें आदिशक्ति माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की आराधना की जाती है। देवी दुर्गा का प्रत्येक स्वरूप अलग नाम, अलग शास्त्रीय पहचान , अलग ग्रहीय महत्ता, मंत्र व अलग मंगलाचरण लिए है। दुर्गा देवी यात्रा नवरात्रि में की जाती हैं जिसमें श्रद्धालु सभी नौ दिनों में उनके नौ स्वरूपों की आराधना करते हैं। माँ दुर्गा के नौ नाम इस प्रकार हैं :-
काशी खंड के 71 वें अध्याय के कथानुसार मुनि भगवान कार्तिकेय से जानना चाहते थे कि देवी का नाम दुर्गा कैसे पड़ा। भगवान कार्तिकेय ने कथावर्णन किया, एक बार दुर्गासुर नाम का एक असुर था जिसने वर्षों तक घोर तपस्या करके ऐसी शक्तियाँ प्राप्त कर ली थीं जिससे कोई भी पुरुष उसे पराजित न कर सके। उसकी शक्ति एवं घोर अहंकार के कारण, उसने धार्मिक व्यक्तियों पर अत्याचार करना प्रारंभ किया। उसने (स्वर्ग लोक व भू लोक सहित) अनेकों लोकों को अपने नियंत्रण में ले लिया ।
सभी देव और मनुष्य भगवान शिव की शरण में आए और समस्या का समाधान करने के लिए आग्रह किया। भगवान शिव को दुर्गासुर की शक्तियों का अनुमान था कि वह किसी पुरुष द्वारा नहीं मारा जा सकेगा। इसलिये उन्होंने देवी पार्वती को समाधान के लिए कहा। देवी ने अपनी प्रतिनिधि के तौर पर, कालरात्रि को कुछ अन्य महिलाओं के साथ दुर्गासुर को चेतावनी देने के लिये भेजा। कालरात्रि दुर्गासुर के निवास स्थल पर पहुंचीं और उसे देवी का संदेश सुनाया और कहा कि वह निर्दोष धार्मिक लोगों को कष्ट देना बंद करे और उन्हे उनकी भूमि लौटा कर यहाँ से कहीं और चला जाए अन्यथा देवी पार्वती निश्चित ही उसका सँहार करेंगी। अहंकारवश दुर्गासुर नें अपने योद्धाओं को कि देवी कालरात्रि को बंधी बनाने का आदेश दिया। परिणामवश माँ कालरात्रि नें एक भीषण हुंकार के साथ अपने मुख से कई अग्नि के गोले निकाले और दुर्गासुर के हज़ारों योद्धाओं को जलाकर भस्म कर दिया। यह देख कर दुर्गासुर व्यथित हो उठा तथा और अधिक योद्धाओं को माँ कालरात्रि का पीछा करने को कहा। माँ कालरात्रि आकाश मार्ग से देवी के निवास विंध्याचल पर्वत पहुँची और उन्हें घटना से अवगत कराया ।
शीघ्र ही दुर्गासुर उस स्थान पर आ पहुँचा जहाँ माँ आदिशक्ति विराजमान थीं और एक घमासान युद्ध आरंभ हुआ। माँ अदिशक्ति ने अपनी विभिन्न शक्तियों को विभाजित करके कई दिव्य शाक्तियों से निर्मित स्वरूप लिए। देवी नें अपनी सर्वोच्च शाक्तियों के प्रयोग से दुर्गासुर व उसके सभी सेनापतियों का सँहार किया।
तत्पश्चात दुर्गासुर का सँहार करने के उपलक्ष्य में देवी दुर्गा के नाम से जानी गयीं।