वराह पुराण में वर्णित कथानुसार जब पद्माकल्प समाप्त होने के कारण पृथ्वी पर जल प्रलय की कभी न खत्म होने वाली प्रक्रिया उत्पन्न हो गई जिसमें पूरी पृथ्वी डूब गई। तब, भगवान वाराह (भगवान नारायण का शुकर रूप) ने अपनी दाढ़ पर पृत्वी को मिटटी के ढ़ेले सामान उठा लिया एवं अपनी शक्ति द्वारा एकार्णवकी अनंत जलराशि निमग्न पृथ्वी का उद्धार किया।
कशी खंड के अध्याय ६१ में वर्णित है कि काशी में भगवान विष्णु यज्ञ वाराह तीर्थ पर यज्ञ वाराह के रूप में विराजमान हैं। ऐसी मान्यता है कि यज्ञ वाराह की आराधना से भक्तों को यज्ञ करने के बराबर लाभ प्राप्त होता है। हालांकि यज्ञ वाराह तीर्थ अब मौजूद नहीं है परंतु मीर घाट पर हनुमान मंदिर में स्थापित भगवान यज्ञ वाराह की प्रतिमा की आराधना की जाती है।
पुराणों के अनुसार काशी में भगवान विष्णु यज्ञ वाराह तीर्थ पर यज्ञ वाराह के रूप में विराजमान हैं।
ऐसा माना जाता है कि यज्ञ वाराह की आराधना से भक्तों को यज्ञ करने के बराबर लाभ प्राप्त होता है। ऐसा माना गया है कि किसी भी प्रकार का यज्ञ अत्यधिक लाभकारी होता है। हालांकि यज्ञ वाराह तीर्थ अब मौजूद नहीं है परंतु मीर घाट पर हनुमान मंदिर में भगवान यज्ञ वाराह की प्रतिमा स्थापित है जिसकी आराधना की जा सकती है।
यह मंदिर पूजा के लिए प्रातः 06.00 से दोपहर 12:00 तथा सायं 4:00 से रात्री 9.00 बजे तक खुलता है। यहाँ सायंकाल में 07.00 बजे आरती होती है।
यज्ञ वाराह A.11/30, स्वर्लीनेश्वर पर पंच अग्नि अखाड़ा घाट पर स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन उपलब्ध है।