काशी खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार पूर्वकाल में वाराणसी में ‘वृद्धहारीत’ नामक एक ब्राह्मण एकदा काशी में विशालाक्षी देवी के दक्षिण ओर सूर्यदेव की प्रतिमा स्थापित कर उनकी भक्तिपूर्वक उग्र तपस्या में लीन हो गया जिससे प्रसन्न हों सूर्यदेव स्वयं उसके समक्ष प्रकट हुए तथा उसे वर माँगने को कहा। उत्तरस्वरूप वृद्धहारीत ने सूर्यदेव से यह कहा कि क्योंकि वह वृद्ध हो गया है तो वह तपस्या करने में सामर्थ्य नहीं है तथा उसने यह इच्छा जताई कि अगर वह फिर तरुण हो जाए तो वह अत्युत्तम तपस्या कर सकेगा। भगवान सूर्य ने तुरंत वृद्ध को वरदान स्वरूप सौंदर्यपुञ्जय तारण्य का वर दिया तथा वहीं स्थापित हों गए। यहाँ सूर्यदेव वृद्धादित्य के नाम से विख्यात हुए। मान्यता अनुसार वृद्धादित्य के दर्शन-पूजन से श्रद्धालुओं को दुर्गति एवं रोगों से मुक्त हो सिद्धि की प्राप्ति होती है।
श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु मंदिर प्रातः 6:30 से रात्रि 9:30 तक खुलता है। उपरोक्त समयावली स्थिति अनुसार बदली जा सकती है।
वाराणसी में वृद्धादित्य डी-3/15, बड़े हनुमानजी के दक्षिण में मीर घाट पर स्थित हैं। मंदिर में दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन सुगमता से उपलब्ध हैं।