काशी खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार पूर्वकाल में त्रैलोक्यविश्रुत पंचनदतीर्थ में सूर्यदेव ने गभस्तीश्वर नामक महाशिवलिंग तथा सर्वदा भक्तजनों को मंगल देनेवाली भगवती मंगलगौरी की स्थापना करके एक लाख वर्षपर्यन्त, पार्वती सहित भगवान शिव की आराधना करते हुए तपस्या की। इस कठोर तपस्या के द्वारा सूर्य देव अत्यंत प्रज्वलित हो उठे जिससे सचराचर त्रिभुवन भयभीत हो काँपने लगा। परम व्याकुलित संसार को देख भगवान विश्वेश्वर स्वयं सूर्य देव को वर प्रदान करने हेतु उनके समक्ष प्रकट हुए। सूर्यदेव की तपस्या से प्रसन्न हो भगवान शिव ने उनसे वरदान माँगने को कहा। तब भगवान शिव को अपने समक्ष देख सूर्यदेव उनकी एवं अर्द्धांगस्वरूपिणी गौरी देवी की स्तुति करने लगे। भगवान शिव एवं माता पार्वती ने प्रसन्न हो सूर्य देव को कई दिव्य आशीर्वाद प्रदान करें तथा यहाँ स्थापित सूर्यदेव मयूखादित्य के नाम से विख्यात हुए। मान्यता अनुसार मयूखादित्य के दर्शन-पूजन से श्रद्धालुओं को कोई व्याधि नहीं होती तथा रविवार को दर्शन-पूजन करने से कभी दरिद्रता नहीं होती।
श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु मंदिर प्रातः 05.00 से दोपहर 01.00 बजे तथा सायं 03.00 से रात्रि 10 बजे तक खुला रहता है। यहाँ सायंकाल में आरती होती है।
वाराणसी में मयूखादित्य के-24/34 में मंगला गौरी मंदिर में खंभे पर स्थित है| मंदिर में दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन अत्यंत सुगमता से उपलब्ध है।