काशी खण्ड के अनुसार काशी से उत्तर दिशा में आर्ककुण्ड पर सूर्य देव उत्तर्राकादित्य के रूप में विराजमान हैं। वर्तमान काल में इस कुण्ड को बकरियाकुण्ड के नाम से जाना जाता है। काशी खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार एकदा सुलक्षणा नामक ब्राह्मण पुत्री अपने माता-पिता की मृत्यु के उपरांत सूर्य देव की उत्तर्राकादित्य के रूप में तपस्या में लीन हो गई। सुलक्षणा को कठोर तपस्या में लीन देख माता पार्वती उससे अत्यंत प्रसन्न हुई तथा उन्होनें सुलक्षणा को वर माँगने को कहा। माता पार्वती के इस वचन को सुनते ही सुलक्षणा की दृष्टि उसके सामने खड़ी बकरी पर पड़ी जो उसकी तपस्या की कालावधि में प्रतिदिन आकर निश्छल भाव से खड़ी रहती थी। अतः सुलक्षणा ने अपनी जगह उस वरदान को उस बकरी को देने को माता पार्वती से कहा। उसके इस परोपकारी भाव को देख माता पार्वती उससे अत्यंत प्रसन्न हुई तथा उन्होनें सुलक्षणा को अपनी सखी होने का वरदन दिया तथा बकरी को भी यह वरदान दिया कि वह आगे चलकर काशीराज की बेटी होगी। तबसे वहाँ सूर्यदेव उत्तर्राकादित्य के रूप में स्थित हैं। मान्यता अनुसार वे श्रद्धालुओं के दु:ख दूर कर परम आनन्द देते हुए सर्वदा काशी की रक्षा करते रहते हैं। जो भी श्रद्धालु उत्तर्राकादित्य के दर्शन-पूजन करता है वह व्याधिभय अथवा दरिद्रता की बाधा से दूर रहता है।
यह मंदिर श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु प्रातः 05.00 से दोपहर 12.00 बजे तथा सायं 05.00 से रात्रि 10.00 बजे तक खुला रहता है। प्रतिदिन यहाँ प्रातः 08.00 बजे आरती होती है।
उत्तर्राकादित्य वाराणसी के समीप अलईपुर, बकरिया कुण्ड पर स्थित है। श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु मंदिर तक पहुँचने के लिए स्थानीय परिवहन उपलब्ध हैं।