शिव पुराण के अनुसार केदारनाथ, हिमालय के केदारपर्वत में मन्दाकिनी के पश्चिमी दिशा में स्थित है। वाराणसी के केदार घाट पर स्थित केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग हिमालय के केदारनाथ की प्रतिकृति है तथा ऐसी मान्यता है कि यहाँ दर्शन करने से भक्तों को हिमालय के केदारनाथ के दर्शन करने समान पुण्यफल प्राप्त होता है।
शिवपुराण में श्री केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग के आविर्भाव की कथा निम्नानुसार वर्णित है: भगवान विष्णु ने धर्मपुत्र नर-नारायण नाम के दो अवतार लिए। नर और नारायण दोनों हिमालय के बद्रिका वन क्षेत्र में तपस्या करते थे। इस पूरे क्षेत्र में अति प्राचीन काल में बद्री (बेर) के वृक्षों का घना वन था, इसी कारण से इस भू-भाग को बद्रीवन कहा जाता है। नर और नारायण दोनों बद्रिका वन में जाकर पार्थिव शिवलिंग बनाकर उनका पूजन करने लगे| शिव तो स्वयं भोलेनाथ हैं जो शीघ्र ही अपने भक्तों के अधीन हो जाते हैं, प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे वर माँगने को कहा तो लोकल्याण की कामना से नर-नारायण ने उनसे प्रार्थना की – “हे देवेश ! यदि आप हम पर प्रसन्न है तो स्वयं अपने रूप में पूजा के निमित्त सर्वदा के लिये यहाँ स्थित हो जाइये और भक्तों को अपने दिव्य दर्शन से उपकृत कीजिए।“
भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली और हिमालय में केदार नामक स्थान में साक्षात् महेश्वर ज्योर्ति स्वरूप हो स्वयं वहाँ स्थापित हो गये और केदारेश्वर नाम से प्रख्यात हुए। इस प्रकार सम्पूर्ण प्राणियों, भक्तों और दर्शनार्थियों के समस्त दुखों, कष्टों, भय और पापों का नाश करने वाले भगवान शिव केदारेश्वर नाम से केदार पर्वत पर निवास करने लगे। मान्यता अनुसार जो व्यक्ति केदारेश्वर महादेव का दर्शन/पूजन करता है, उसके सब मनोरथ पूर्ण होते हैं। इस प्रकार बद्रीवन जाने वाले मोक्ष प्राप्त कर लेते है। यहाँ नर-नारायण और केदारेश्वर महादेव का दर्शन मुक्तिदायक माना जाता है।
दर्शन पूजन हेतु मंदिर प्रातः 03.00 से 11.00 बजे तक खुला रहता है। मंदिर में प्रातः 03.15 बजे मंगला आरती होती है, 10:00 बजे भोग आरती होती है, सायं 05.30 बजे संध्या आरती होती है तथा रात्रि में 10.30 बजे शयन आरती होती है।
केदारेश्वर बी-6/102, केदार घाट के प्रसिद्ध इलाके में स्थित है। मंदिर दर्शन/ यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन अत्यंत सुलभ है।