वाराणसी में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग झारखण्ड में संथाल परगना में पूर्व रेलवे के जसीडीह स्टेशन के पास स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। काशीखण्ड के अनुसार वाराणसी में स्थित वैद्यनाथ कमच्छा क्षेत्र में बैजनत्था नाम से प्रसिद्ध है।
शिव महापुराण में वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य एवं महात्म्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि जब महाभिमानी राक्षसराज रावण कैलाश पर्वत जाकर भगवान शिव की आराधना करके भी शिवजी को प्रसन्न करने में असमर्थ रहा तब उसने बलिदान-पूर्वक अपना शीश काटकर भगवान शिवजी को प्रसन्न करना चाहा, परिणामतः प्रसन्न होकर साक्षात भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए तथा शिवजी ने रावण के सिर को पूर्ववत् पूर्ण कर दिया। साथ ही उसे अतुल बल देकर सभी मनोरथ प्रदान किये। शिवजी को प्रसन्न हुआ जान रावण ने उनसे यह प्रार्थना की “हे प्रभो ! मैं आप को अपनी नगरी लंका में ले जाना चाहता हूँ। मुझ भक्त की यह प्रार्थना स्वीकार कीजिये।“
रावण की इस इच्छा का ज्ञात होने के उपरांत शिवजी ने विचार कर कहा- तुम मेरे लिंग को परम भक्ति के साथ अपने घर ले जाओ। पर ध्यान रखना कि यदि तुम कहीं बीच में इसे पृथ्वी पर रख दोगे, तो वह वहीं स्थिर हो जायेगा और आगे न जा सकेगा। तदनन्तर राक्षसेश्वर रावण ज्योतिर्लिंग को लेकर अपनी नगरी लंका को प्रस्थान कर गया। मार्ग में शिवजी की माया से उसे लघुशंका की इच्छा हुई, जिसके वेग को वह रोक न सका। वह वहाँ आते हुये एक गोप को लिंग सौंपकर लघुशंका करने लगा। गोप ने शिवलिंग के भार से व्याकुल हो उसे पृथ्वी पर रख दिया। तब वज्रसार से उत्पन्न हुआ वह ज्योतिर्लिंग वहीं स्थित हो गया। फिर वह लिंग वैद्यनाथेश्चर के नाम से प्रसिद्ध हुआ जिसकी तीनों लोकों में ख्याति हुई। यह सत्पुरूषों को मुक्ति देने वाला ऐसा दिव्य और श्रेष्ठ ज्योतिर्लिंग है जिसका ज्ञात होते ही ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्रादिक देवताओं तथा ऋषियों ने आकर प्रेम सहित इस लिंग की पूजा की। देवताओं ने इस लिंग को वैद्यनाथ के नाम से प्रतिष्ठित किया।
परन्तु दुष्टात्मा रावण द्वारा शिवजी से प्राप्त वर से देवताओं में भय उत्पन्न हुआ तथा उन्होंने नारदजी को बुलाकर हार्दिक दु:ख व्यक्त किया। नारदजी ने देवताओं को समझाकर कहा कि “आप लोग व्याकुल न हों मैं अवश्य इसका कोई उपाय करूँगा।“ तदुपरांत नारदजी रावण के समक्ष गए तथा उसके तप की बड़ी प्रशंसा की। उसके तप का सम्पूर्ण वृत्तान्त पूछा। रावण ने अपने दीर्घकालीन तप की साभिमान प्रशंसा कर कहा कि “अब तो शिवजी के वरदान से मुझे किसी प्रकार की चिन्ता नहीं रह गयी है और अब तो मैं शीघ्र ही तीनों लोकों को जीत लूँगा।“तब नारदजी मन ही मन हँसते हुये बोले कि” हे रावण ! अब तुम्हारे हित की एक बात कहता हूँ अब तुम फिर उनके पास जाओ। तुम वहाँ जाकर कैलाश पर्वत को ही उखाड़ने का प्रयत्न करो, तभी पता लगेगा कि शिवजी का दिया हुआ वरदान कहाँ तक सफल हुआ। रावण को यह बात जँच गयी। वह विधि वश मोहित होकर कैलाश की ओर प्रस्थान कर गया। वहाँ जाकर कैलाश पर्वत को पकड़कर उसको कम्पित करने लगा। तब गिरिजा के कहने पर महादेवजी ने रावण को घमण्डी समझकर शाप दे दिया। महादेव बोले-“ रे रे दुष्ट भक्त दुर्बुद्धि रावण ! तू अपने बल पर इतना घमण्ड न कर। तेरी इन भुजाओं का घमण्ड चूर करने वाला वीर पुरूष शीघ्र ही इस जगत में अवतीर्ण होगा।“ यह सुनकर रावण भी जैसे आया था, वैसे ही अपने घर को लौट गया।
इस ज्योतिर्लिंग के माहात्म्य के विषय में शिव महापुराण में यह वर्णन है कि शिवलिंग के दर्शन मात्र से श्रद्धालुओं के सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं तथा पाप से मुक्ति मिलती है। यह शिवलिंग सत्पुरुषों को भोग व मोक्ष देने वाला माना जाता है।
दर्शन-पूजन के लिए यह मंदिर प्रातः 6:00 से 12:00 बजे तथा सायं 4:00 से 10:00 बजे तक खुलता है।
वैद्यनाथ मंदिर कमच्छा संकटहरण हनुमान मन्दिर से सी.एच.एस. प्राइमरी स्कूल मार्ग पर 200 मीटर पर बैजनत्था मुहल्ले में स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन द्वारा सुगमता से पहुँचा जा सकता है।