काशी में स्थित सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात में काठियावाड़ के प्रभास क्षेत्र में स्थित सोमनाथ की प्रतिकृति है जो द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। काशी खण्ड के अनुसार वाराणसी में सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग मान मंदिर घाट के समीप स्थित है।
शिव महापुराण में सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के महात्म्य एवं उनके प्राकट्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि महात्मा प्रजापति दक्ष ने अपनी सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्र देव के साथ करवाया था। उन सत्ताईस अर्धांगिनियों में चन्द्रदेव को रोहिणी अधिक प्रिय थी। इसके कारणवश, रोहिणी के अतिरिक्त चन्द्रदेव की अन्य अर्धांगिनियां व्याकुल होकर अपने पिता दक्ष की शरण में गयी। अपनी पुत्रियों की व्यथा सुनकर दक्ष भी विषाद-ग्रस्त हो गए तब वह चन्द्रदेव के पास जाकर बोले-“ हे कलानिधे! तुम निर्मल कुल में उत्पन्न होकर अपने आश्रित स्त्रियों के साथ न्यूनाधिक व्यवहार क्यों करते हो? ऐसा करने से तुम नरकगामी हो जाओगे।“ शिवमाया से मोहित चन्द्र ने दक्ष की बातों पर ध्यान न दिया तथा भावी वश रोहिणी में आसक्त रहकर अपनी अन्य अर्धांगिनियों का भी आदर नहीं किया। तब कन्याओं के तिरस्कार की सूचना प्राप्त होने के उपरांत दक्ष ने व्याकुल होकर चन्द्रदेव को क्षयरोग से ग्रसित होने का शाप दे दिया। शापग्रस्त होते ही चन्द्रदेव क्षीण हो गए जिससे चारों ओर हाहाकार मच गया। इन्द्र एवं अन्य देवता वशिष्ठ व अन्य ऋषि ब्रह्मा की शरण में गये। तब प्रजापति ब्रह्मा ने यह समाधान बताया कि अब चन्द्रदेव को देवताओं के साथ प्रभास क्षेत्र में जाकर मृत्युंजय मंत्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान शिव की अराधना करनी होगी तभी उन्हें क्षयरोग से छुटकारा मिल सकता है।
तब देवताओं और ऋषियों के कहने पर ब्रह्माजी की आज्ञा के अनुसार चन्द्रदेव ने प्रभास क्षेत्र में छ: महीने तक निरन्तर तपस्या की व मृत्युंजय मंत्र से भगवान शिव का पूजन किया। चन्द्रदेव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव उनके समक्ष प्रकट हो गये तथा वह चन्द्रदेव से बोले-“ चन्द्रदेव! तुम्हारा कल्याण हो। तुम्हारे मन में जो अभीष्ट हो वह वर माँगो। तुम्हे संपूर्ण उत्तम वर प्रदान करूँगा।“ चन्द्रदेव ने भगवान शिव से अपने क्षय रोग के निवारण का अनुरोध किया। यह सुनकर शिवजी बोले- “चन्द्रदेव! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्ष में वह निरन्तर बढ़ती रहे।“ तदनन्तर चन्द्रदेव ने भक्ति भाव से भगवान् शंकर की स्तुति की तथा यह सुनकर वहाँ आए देवता एवं ऋषि प्रसन्न हुए व शिवजी से आदरपूर्वक बोले- हे महादेव! अब आप पार्वती सहित यहाँ पर स्थित हो जायें। तब प्रसन्न होकर भगवान शिव उस क्षेत्र के माहात्मय को बढ़ाने तथा चन्द्रदेव के यश का विस्तार करने के लिये उन्ही के नाम पर वहाँ सोमेश्वर कहलाये और सोमनाथ के नाम से तीनों लोकों में विख्यात हुये।
ऐसी मान्यता है कि सोमनाथ का पूजन करने से शिवजी उपासक के क्षय तथा कुष्ठ आदि रोगों का नाश कर देते हैं। देवताओं ने वहाँ पर एक सोमकुण्ड की स्थापना की है। यदि कोई निरन्तर छ: माह तक इस कुण्ड में स्नान करता है, तो उसके क्षय आदि असाध्य रोग नष्ट हो जाते है तथा जो दस सोमनाथ लिंग का दर्शन पूजन करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर अन्त में शिवलोक को प्राप्त करता है।
सोमेश्वर मंदिर में विशेषतः स्थानीय श्रद्धालु पूजा-अर्चना करते हैं अतएव इस मंदिर के खुलने एवं बंद होने का समय स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा ही प्रबंधित किया जाता है। प्रायः मंदिर प्रतिदिन प्रातः 5:00 से 8:00 बजे तथा सायं 6:00 से 8:00 बजे तक खुलता है।
स्थानीय निवासियों के अनुसार महाशिवरात्रि एवं सावन पर्व की कालावधि में मंदिर में भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए भारी संख्या में तीर्थयात्री आते हैं।
काशी में सोमेश्वर मंदिर डी-16/34, मानमंदिर घाट पर स्थित है। मंदिर दर्शन/ यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन अत्यंत सुलभ है।