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त्र्यम्बकेश्वर महादेव मंदिर

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त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के नासिक जिले में ब्रह्मगिरि के पास गोदावरी नदी के तट पर स्थित है। वाराणसी में त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग को बड़ादेव मोहल्ले के पुरुषोत्तम मंदिर में त्रिलोकनाथ नाम से भी जाना जाता है जो नासिक के त्र्यम्बकेश्वर मंदिर की एक प्रतिकृति है।

शिव महापुराण में सोमेश्वर ज्योतिर्लिंग के महात्म्य एवं प्राकट्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि पूर्वकाल में गौतम नाम से विख्यात एक श्रेष्ठ ऋषि थे जिनकी परम धार्मिक अर्धांगिनी का नाम अहिल्या था और जिन्होनें दस हजार वर्षों तक दक्षिण दिशा में ब्रह्मगिरी नामक पर्वत पर तपस्या की थी। एक समय सौ वर्ष तक वहाँ वर्षा नहीं हुई, जिससे वहाँ के मुनि, मनुष्य, पशु ओर मृगादि सब जीव वहाँ से पलायन करने लगे। ऐसी अनावृष्टि को देखकर गौतमजी ने प्राणायाम का आश्रय लेकर वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिये छह मास तक तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर वरुण देव प्रकट हुए और उनसे वर मांगने को कहा। गौतमजी ने कहा- “ आप जल राशि के स्वामी है। आप ही मुझे-जल दान दे सकते हैं। कृपा करके मुझे जल दान दें, क्योंकि जल-दान से बड़ा नित्य, अक्षय तथा दिव्य फल को देने वाला दूसरा कोई नहीं है। गौतमजी की प्रार्थना सुन वरुणदेव ने उनसे एक हाथ भर गर्त खोदने को कहा। वरुणजी ने दिव्य शक्ति का उपयोग कर उस गर्त में जल भर दिया और गौतम ऋषि से कहा “तुम्हारा खोदा हुआ यह गर्त अक्षय जल तीर्थ होगा एवं तुम्हारे नाम से जाना जाएगा।“ तत्पश्चात उस जल तीर्थ का नाम गौतम तीर्थ पड़ा।

वरुणजी ने कहा कि इस तीर्थ पर जो कोई दान, हवन, तप, पूजन तथा पितरों का श्राद्ध करेगा, उसे अक्षय फल प्राप्त होगा। इस प्रकार जल पाकर गौतम ऋषि ने विधिपूर्वक अपने नित्य-नैमित्तिक कर्मों को किया और जौ आदि कई प्रकार के धान्यों को बोया जिससे वहाँ नाना प्रकार के वृक्ष और विभिन्न प्रकार के पुष्प, फल आदि उत्पन्न हो गये, जिसके उपरांत वहाँ अन्य ऋषि, पशु-पक्षी तथा वन्य जीव भी लौट आए। महर्षि गौतम के प्रभाव से अब उस वन का वातावरण आनंदमयी हो गया।

एक बार उसी गर्त से महर्षि गौतम के शिष्य जल लेने गये। उसी समय अन्य ऋषियों की पत्नियां भी वहां अपना-अपना घड़ा लेकर जल भरने आईं। महर्षि गौतम के शिष्यों और ऋषि पत्नियों के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया कि पहले जल कौन लेगा। इतने में ही माता अहिल्या वहां आयीं और कहा कि ये बालक आप लोगों से पहले यहाँ आ गए थे, इसीलिए पहले इन्हे जल लेने दीजिए। इस बात से ऋषि पत्नियां को बहुत बुरा लगा। उन्हें लगा कि माता अहिल्या अपने शिष्यों का पक्ष ले रही हैं। व्यंग्य करते हुये कहा कि यह जल भी तो महर्षि गौतम के द्वारा मिला है इसी कारण से ये जल पहले इन बालकों को प्रदान करवा रही हैं। ऋषि पत्नियाँ जल के प्रसंग को लेकर अहिल्या पर नाराज हो गयी। उन्होंने अपने पतियों को ऋषि गौतम का अपकार करने के लिए उकसाया। उन ब्राह्मणों ने इसके निमित्त ऋषि गौतम का अनिष्ट करने के लिए भगवान्‌ श्री गणेशजी की आराधना की। भक्त पराधीन गणेशजी प्रसन्न हो प्रकट हुए तथा उन्होनें वर माँगने को कहा। उन ब्राह्मणों ने कहा- ‘प्रभो! यदि आप हम पर प्रसन्न हैं तो किसी प्रकार ऋषि गौतम को इस आश्रम से बाहर निकाल दें।’ उनकी यह बात सुनकर गणेशजी ने उन्हें यह समझाने का प्रयास किया कि ऐसा वर माँगना अनुचित है। किंतु वे अपने आग्रह पर अटल रहे। अंततः गणेशजी को विवश होकर उनकी बात माननी पड़ी। अपने भक्तों का मन रखने के लिए वे एक दुर्बल गाय का रूप धारण करके ऋषि गौतम के खेत में उपजे धान और जौ का भक्षण करने लगे। गाय को फसल भक्षित करते देख ऋषि बड़ी नरमी के साथ हाथ में तृण लेकर उसे हाँकने गए। उन तृणों का स्पर्श होते ही वह गाय पृथ्वी पर गिरकर ऋषियों के देखते-देखते मर गयी।

समस्त ब्राह्मण एकत्र होकर गो-हत्यारा कहकर ऋषि गौतम की भर्त्सना करने लगे और उन्हें यह आश्रम छोड़कर अन्यत्र कहीं दूर चले जाने को कहा। उन्होनें ऋषि गौतम पर व्यंग्य करते हुए कहा कि इस गोहत्या के प्रभाव से जब तक तुम आश्रम में रहोगे तब तक देवता और पितर हमारे द्वारा दिये गये हव्य-कव्य को ग्रहण नही करेंगे। गो-हत्यारे के निकट रहने से हमें भी पाप लगेगा। अत: परिवार सहित तुम शीघ्र ही यहाँ से दूर चले जाओ। ऐसा कहकर उन्होने ऋषि गौतम पर पथराव करना प्रारम्भ कर दिया। ऋषि गौतम इस घटना से बहुत आश्चर्यचकित और दुःखी थे। विवश होकर ऋषि गौतम अपनी पत्नी अहिल्या के साथ वहाँ से एक कोस दूर जाकर रहने लगे। किंतु उन ब्राह्मणों ने वहाँ भी उनका रहना दूभर कर दिया और ऋषि गौतम को वेद-पाठ और यज्ञादि के कार्य करने के अधिकार से वंचित कर दिया।’ अत्यंत अनुनय भाव से ऋषि गौतम ने उन ब्राह्मणों से प्रार्थना की कि आप लोग मेरे प्रायश्चित और उद्धार का कोई उपाय सुझाएँ। ऋषियों ने कहा- तुम अपने पाप के प्रायश्चित हेतु तीन बार सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा कर फिर यहाँ आकर एक मास तक व्रत करो। फिर ब्रह्माजी के इस पर्वत की एक हजार बार परिक्रमा करने पर ही तुम्हारी शुद्धि होगी अथवा तुम अपने तप से गंगाजी को लाकर स्नान करो और कोटि संख्या में पार्थिव लिंग का निर्माण करके शिवजी का पूजन और रुद्राभिषेक करो। ऋषि गौतम ने अन्य ऋषियों की यह व्यवस्था स्वीकार की। ब्रहमगिरी पर्वत की परिक्रमा कर पार्थिव लिंग का निर्माण करके शिवजी का पूजन किया इसके उपरांत देवी अहिल्या ने भी उसी प्रकार शिवलिंगों का पूजन किया। ब्राह्मणों के कथनानुसार महर्षि गौतम वे सारे कार्य पूर्ण करके सपत्नीक पूर्णतः तल्लीन होकर भगवान शिव की आराधना करने लगे। गौतम ऋषि के इस प्रकार की आराधना करने पर संतुष्ट हुये भगवान शिव वहाँ पार्वती और प्रथमगणों के साथ प्रकट हो गये और उनसे वर माँगने को कहा। महर्षि गौतम ने उनसे कहा- ‘भगवान्‌ मैं यही चाहता हूँ कि आप मुझे गो-हत्या के पाप से मुक्त कर दें।’ भगवान्‌ शिव ने कहा- ‘गौतम ! तुम सर्वथा निष्पाप हो। फिर मेरी भक्ति में तत्पर तुम पापी कैसे हो सकते हो। गो-हत्या का अपराध तुम पर छल पूर्वक लगाया गया था। तुम्हारे साथ कपट करने वाले वे ऋषि ही पापी, दुराचारी और हत्यारे है। छल पूर्वक ऐसा करवाने वालों को मैं दंडित करना चाहता हूँ।’ इस पर महर्षि गौतम ने कहा कि प्रभु! उन्हीं के निमित्त से तो मुझे आपका दर्शन प्राप्त हुआ है। अब उन्हें मेरा परमहित समझकर उन पर आप क्रोध न करें।’ गौतमजी के ऐसे वचन सुनकर शिवजी उनपर प्रसन्न हुए और कहा- “हे विप्रों में श्रेष्ठ ऋषे ! मैं तुम्हारी उदारता से प्रसन्न हूँ,वर माँगो।” गौतम ऋषि ने कहा- “हे देव ! यदि आप मुझपर प्रसन्न है, तो मुझे गंगाजी को देकर संसार का उद्धार कीजिये। मैं आपका आभारी रहूँगा।” गौतम ऋषि का यह आग्रह सुनकर भगवान शिव ने गंगाजी का बचा हुआ वह तत्वरूप जल, जो उनके विवाह के समय ब्रह्माजी ने उन्हें दिया था, मुनि को प्रदान किया। गंगाजी एक परम सुन्दर स्त्री के स्वरूप में वहाँ प्रकट हो गयी, उन्हें शत-शत नमन कर महर्षि गौतम ने कहा, हे गंगे ! आपने सब लोकों को पवित्र किया है। अतएव मुझ नरक में गिरे हुए को भी पवित्र कीजिये। भगवान शिव ने गौतम ऋषि की प्रार्थना स्वीकार करते हुये गंगा जी से आग्रह किया की हे गंगे ! मेरी आज्ञा से इन गौतम ऋषि को पवित्र करिये। भगवान शिव एवं ऋषि गौतम के ऐसे वचन को सुनकर गंगाजी ने कहा- मैं सपरिवार गौतम ऋषि को पवित्र तो करूँगी। परन्तु इसके बाद फिर स्वर्ग को चली जाऊँगी। यदि आप को यह स्वीकार हो तो कहिये।

भगवान शिव ने कहा- नहीं, जब तक कलियुग रहे और अट्ठाईसवाँ वैवस्वत मनु हों, तब तक तुम यहाँ रहो। गंगाजी ने कहा- यदि मेरा इतना ही माहात्म्य होगा, तो मैं यहाँ वास करने को उद्यत हूँ । परन्तु आप भी पार्वती सहित पृथ्वी पर निवास करें। तब संसार के उपकारार्थ भगवान शिव ने यह भी स्वीकार किया। फलस्वरूप दक्षिण की गंगा अर्थात गोदावरी नदी का उद्गम हुआ। ऋषियों सहित सबने गौतमजी के साथ मिलकर गंगा सहित भगवान शिव की पूजा की। उन सबसे पूजित हो भगवान शिव ज्योतिर्स्वरूप वहाँ स्थापित हो गए और वह शिवलिंग त्रयम्बक नाम से विख्यात हुआ। गौतम ऋषि की आराधना के फलस्वरूप गंगाजी स्वयं ही उस पर्वत से निकली और उसी समय से वह स्थान गंगाद्वार के नाम से प्रसिद्ध हुआ। ऐसी मान्यता है कि जो इनका दर्शन/पूजन और सेवा करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।

जिस रमणीक क्षेत्र के दर्शन से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं उस पवित्र क्षेत्र में ऋषि गौतम के साथ विद्वेष करने वाले ऋषि भी गंगाजी के पावन जल में स्नान करने आये, तो उन्हे देखते ही गंगाजी अन्तर्धान हो गयीं। ऋषि गौतम माँ गंगा की स्तुति करते हुए उनसे आग्रह किया “ऐसा मत कीजिये माता, इन दोषियों पर कृपा कीजिए और मेरे पुण्य- प्रभाव से इन अभिमानियों को भी दर्शन दीजिये। गौतमजी का ऐसा वचन सुनकर आकाश-मण्डल से गंगाजी की आकाशवाणी हुई “हे गौतम मुने ! तुम्हारे वचन बड़े ही कल्याणकारी है। परंतु इनके पापों का निराकरण तो तभी होगा जब कि ये ऋषि अपने उन पापों को दूर करने के लिए जीवित रहकर प्रायश्चित करेंगे। जब तक ये ऋषि इस समस्त पर्वत की एक-सौ बार परिक्रमा नहीं कर लेते तब तक इन दुष्टों को मेरा दर्शन प्राप्त नही होगा। गंगाजी की ऐसी वाणी सुनकर ऋषियों ने उनकी आज्ञा से वैसा ही किया। गंगाद्वार के नीचे का वह भाग कुशावर्त के नाम से प्रसिद्ध हुआ और गंगाजी वहाँ प्रकट हो गयीं। जो भी मनुष्य वहाँ स्नान करता है, वह अपने सब पापों से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेते है। इस प्रकार यह गौतमी गंगा की उत्पत्ति सब पापों का हरण करने वाली और श्रेष्ठ माहात्म्य वाली है। जो मनुष्य त्रयम्बक ज्योतिर्लिंग के इस माहात्म्य को सुनता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।

पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय

मंदिर दर्शन/पूजन के लिए प्रातः 06.00 से 11.00 बजे तथा सायं 05.00 से 09.00 बजे तक खुलता है। यहाँ प्रातः एवं सायं काल में आरती होती है।

मंदिर की स्थिति

त्र्यम्बकेश्वर (जो त्रिलोकनाथ के नाम से जाने जाते है) के0सी0एम0 सिनेमा से दशाश्वमेध थाने की गली में स्थित है। मंदिर दर्शन/ यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन अत्यंत सुलभ है।

अंतिम नवीनीकृत तिथि June 29, 2019 at 6:29 am