शिव महापुराण में विश्वेश्वर ज्योतिर्लिंग के महात्म्य एवं उनके उद्भव या प्राकट्य के सम्बन्ध में यह कथा वर्णित है कि जब कैवल्य परमेश्वर ने एक से दो होने की इच्छा की तो वही परमात्मा सगुण रूप से शिव हो गए। शिवजी अर्द्धनारीश्वर रूप के भेद से दो रूप वाले हो गए। जिसमें पुरुष रूप शिव एवं स्त्री रूप पार्वती होकर अदृश्य हो गए और उसी सच्चिदानन्द रूप में मिलकर फिर स्वभावतः पुरुष और प्रकृति रूप में प्रकट हो गए। तत्पश्चात उस निर्गुण परमात्मा से यह आकाशवाणी हुई कि तप करना ही श्रेष्ठ है तथा तप से ही उत्तम सृष्टि उत्पन्न होगी। तदनन्तर निर्गुण शिव ने समस्त तेजों के सार स्वरूप जो सभी साधनों से सम्पन्न, शोभायमान तथा सुन्दर था, ऐसी पाँच कोस के सुन्दर नगर का निर्माण किया जहाँ स्थित होकर सृष्टि के निर्माण की इच्छा से भगवान विष्णु ने बहुत काल तक तप किया। तब उनके परिश्रम से अनेक जलधारायें प्रकट हो गईं जिसमें शून्य के अतिरिक्त और कुछ न था। इस अद्भुत दृश्य को देख विष्णुजी ने आश्चर्य चकित हो कहा कि “यह क्या हो गया?” पश्चात भगवान विष्णु ने अपने शरीर को ज़ोर से हिलाया तो उनके कान से एक मणि गिरा, जिससे वहाँ मणिकर्णिका के उस पाँच कोस के विस्तार वाले सम्पूर्ण स्थल को शिव ने अपने त्रिशूल पर धारण कर लिया जिसमें विष्णुजी माता लक्ष्मी के साथ सो गए। तब शिवजी की आज्ञा से उनके नाभि-कमल से ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई। फिर उन्ही ब्रह्मा जी ने शिवजी की आज्ञा से सृष्टि की रचना की और ब्रह्मांड सहित चौदह लोकों का निर्माण किया।
परंतु यह सोचकर कि ब्रह्मांड में अपने कर्मों से बंधे प्राणी शिव को कैसे पायेंगे, भगवान शिव ने पंचकोशी को ब्रह्माण से पृथक रखा। अतः पंचकोशी लोक कल्याणदायक तथा कर्मों को नाश करने वाला है। इसी का नाम काशी है जो मोक्ष प्रकाशिका एवं ज्ञान-दात्री शिवजी की प्रिय नगरी है। यहाँ शिवजी ने अपने मुक्तिदायक ज्योतिर्लिंग को स्वयं स्थापित किया। फिर शिवजी ने उस पाँच कोस वाली काशी नगरी को अपने त्रिशूल से उतार कर मृत्युलोक में स्थापित कर दिया। इस नगरी का ब्रह्मा जी के एक दिन पूरे होने पर भी नाश नहीं होता तथा प्रलय में शिवजी इसे अपने त्रिशूल पर धारण किये रहते हैं।
मान्यता अनुसार काशी में स्थित विश्वेश्वर लिंग मुक्तिदाता एवं सम्पूर्ण कामनाओं को पूर्ण करने वाला है। ऐसा माना जाता है कि शिवजी के इस क्षेत्र(काशी) में सभी को मुक्ति की प्राप्ति होती है तथा इस क्षेत्र में उत्पन्न हुआ चाहे वह स्वेदज, अण्डज, उद्भिज कोई भी जीव हो मरने पर मोक्ष प्राप्त करता है। यहाँ किसी प्रकार की साधना, सिद्धि की आवश्यकता नहीं है। जो मनुष्य काशी में आकर गंगा स्नान करता है वह पूर्व जन्म के संचित किये गए कर्म तथा इस जन्म में किये गए अशुभ कर्मों का विनाश कर मुक्ति की प्राप्ति करता है।
श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु मंदिर 1 से 2 घंटों के अंतराल में 24 घंटे खुला रहता है। मंदिर में प्रातः 3:00-4:00 बजे मंगला आरती, 11:15 से दोपहर 12:20 बजे भोग आरती, सायं 7:00 से 7:30 तक सप्त ऋषि आरती, रात्रि 9:00 से 10:00 बजे तक दैनिक श्रृंगार आरती तथा रात्रि 10:30 से 11:00 बजे शयन आरती होती है।
अधिक जानकारी तथा विशेष पूजा करने हेतु मंदिर की आधिकारिक वेबसाइट www.shrikashivishwanath.org पर जा सकते हैं।
विश्वेश्वर मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर, वाराणसी में स्थित है।