वाराणसी में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आन्ध्र प्रदेश के कृष्ण नगर जिले में कृष्णा नदी के तट पर श्री शैल पर्वत पर स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। आन्ध्र प्रदेश में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग “दक्षिण के कैलाश” नाम से भी विख्यात है। काशीखण्ड के अनुसार वाराणसी में स्थित मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग त्रिपुरांतकेश्वर (सिगरा क्षेत्र में टीले ) पर स्थित है।
शिव महापुराण में मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य एवं महात्म्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि जब पार्वती पुत्र कुमार कार्तिकेय पृथ्वी की परिक्रमा करके कैलाश लौटे तथा श्री गणेश के विवाह आदि की बात सुनकर अपने माता-पिता को प्रणाम करके क्रौंच पर्वत को प्रस्थान कर गए इससे विषादपूर्ण होकर माता पार्वती व भगवान शिव भी कुमार के पास क्रौंच पर्वत पर गए। उधर जब कुमार कार्तिकेय को यह ज्ञात हुआ कि उनके माता-पिता क्रौंच पर्वत पर आगमन करने वाले हैं तब वे क्रौंच पर्वत से भी प्रस्थान करके तीन योजन दूर चले गये।
उस स्थान पर पुत्र को न पाकर, पुत्र-स्नेह से व्याकुल होकर भगवान शिव व माता पार्वती ज्योतिर्मय स्वरूप धारण करके वहाँ स्थापित हुए और वहाँ से कुमार को देखने के लिये अमावस्या के दिन भगवान शिव स्वयं वहाँ उपस्थित होते हैं तथा पूर्णिमा के दिन माता पार्वती निश्चय ही वहाँ पदार्पण करती हैं। उसी दिन से यहाँ स्थापित शिवलिंग मल्लिकार्जुन नाम से विख्यात है। इसमें माता पार्वती और भगवान शिव दोनों ही ज्योति रूप में उपस्थित हैं। मल्लिका का अर्थ है माता पार्वती तथा अर्जुन का अर्थ है भगवान शिव।
ऐसी मान्यता है कि मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन-पूजन से श्रद्धालु समस्त पापों से मुक्त होकर सम्पूर्ण अभीष्ट को प्राप्त करते हैं। अतः मान्यता अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के दर्शन मात्र से ही श्रद्धालु समस्त सुख प्राप्त कर सकते हैं ।
प्रायः दर्शन-पूजन के लिए यह मंदिर प्रातः 6:00 से 11:30 बजे तथा सायं 5:00 से 9:00 बजे तक खुलता है। यद्यपि मंदिर में श्रद्धालुओं की संख्या अनुसार मंदिर में दर्शन-पूजन का समय विस्तारित भी कर दिया जाता है।
काशी में मल्लिकार्जुन मंदिर होटल पूर्विका के सामने शीतला मन्दिर के बगल में स्थित है। मंदिर दर्शन/ यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन उपलब्ध हैं।