This page uses Javascript. Your browser either doesn't support Javascript or you have it turned off. To see this page as it is meant to appear please use a Javascript enabled browser.
वीआर हेड्सेट के माध्यम से वर्चुयल टूर का अवलोकन करने हेतु अपने स्मार्टफोन में गूगल कार्डबोर्ड ऐप इनस्टॉल करें।

ओंकारेश्वर महादेव मंदिर

मुख्य पृष्ठ  »  ओंकारेश्वर महादेव मंदिर

वाराणसी में स्थित ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नगरी में विराजमान ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। काशीखण्ड के अनुसार वाराणसी में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग ओंकारेश्वर मोहल्ले में स्थित है।

शिव महापुराण में ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्राकट्य एवं महात्म्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि पूर्वकाल में एकदा भक्तिमान् नारदजी ने गोकर्ण तीर्थ में प्रस्थान कर गोकर्ण नामक शिव जी की वंदना की तथा उन्होनें विन्ध्याचल पर्वत पर पुनरागमन कर वहाँ भी भगवान शिव का मानपूर्वक पूजन किया। परिणामत: विन्ध्य पर्वत ने अहंमन्यवादिक होकर यह विचार धारण कर लिया कि वह परिपूर्ण है तथा उसमें किसी भी प्रकार का अभाव नहीं है। तब अभिमान से पूर्ण विंध्य से नारद जी बोले- “हाँ ! तुम अवश्य ही सर्वगुण सम्पन्न हो, परन्तु सुमेरू पर्वत उच्चतम है तथा उसकी देवताओं में गणना है जिनमें तुम्हे सम्मिलित नहीं किया जाता। “यह कहकर नारदजी वहाँ से प्रस्थान कर गए परंतु विन्ध्याचल व्याकुल होकर भगवान शिव के शरणागत होकर भक्ति भाव से ओंकार नामक शिव की पार्थिव मूर्ति बनाकर छह महीने तक नित्य शिवजी की कठिन अराधना में लीन हो गया। फलस्वरूप विन्ध्य की कठोर तप से प्रसन्न होकर स्वयं भगवान शिव उसके समक्ष प्रकट हुए तथा शिवजी ने विन्ध्य से वर माँगने को कहा जिसके जवाब के रूप में विन्ध्य ने कहा- “हे शम्भो ! यदि आप मुझसे प्रसन्न हैं तो आप मुझे यह वर दीजिये कि मैं अपने समस्त मनोवांछित कार्यों को अपनी बुद्धिमत्ता से सिद्ध कर सकूँ।“

विन्ध्य की इस इच्छा का ज्ञात होते ही भगवान शिव चिंतन में पड़ गए क्योंकि विन्ध्याचल ने दूसरों को दु:ख देने वाले वर की इच्छा प्रकट की । अतः भगवान शिव इस असमंजस में पड़ गए कि ऐसा क्या किया जाए जिससे विन्ध्य का वरदान भी पूर्ण हो जाये तथा दूसरों को कष्ट भी न हो। यह विचार करते हुये भगवान शिव तथास्तु कहकर वहीं स्थापित हो गए। तब वहाँ स्थित ओंकार लिंग दो भागों में विभक्त हो गई और प्रणव में जो शिव थे वे ओंकारनाम से विख्यात हुए तथा पार्थिव मूर्ति परमेश्वर के नाम से विख्यात हुई।

ऐसी मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु यहाँ आकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं वह आवागमन से मुक्त हो जाता है।

पूजा का सर्वश्रेष्ठ समय

दर्शन-पूजन के लिए यह मंदिर प्रातः 5:00 से 11:00 बजे तथा सायं 5:00 से 9:00 बजे तक खुलता है। प्रातः काल में यहाँ आरती का आयोजन होता है। यहाँ आराधना करने के लिए वैशाख माह का विशेष महत्व है। इस दौरान मंदिर में वार्षिक श्रृंगार किया जाता है।

मंदिर की स्थिति

ओंकारेश्वर मंदिर जलालीपुरा मस्जिद के सामने गली में ऊॅचे टीले पर स्थित है। मंदिर दर्शन/ यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन अत्यंत सुलभ हैं।

अंतिम नवीनीकृत तिथि June 29, 2019 at 6:21 am