वाराणसी में स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मध्य प्रदेश में क्षिप्रा नदी के तट पर उज्जैन नामक नगरी में विराजमान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की प्रतिकृति है। काशीखण्ड के अनुसार वाराणसी में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मैदागिन क्षेत्र में महामृत्युंजय महादेव मन्दिर परिसर में स्थित है।
शिव महापुराण में महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य एवं महात्म्य के संबंध में यह कथा वर्णित है कि अवन्ती नामक शिवजी की प्रिय नगरी में एक वेदपाठी श्रेष्ठ ब्राम्हण निवास करता था। उसके चार पुत्र थे। उनमें पहले पुत्र का नाम देवप्रिय, दूसरे का मेधाप्रिय, तीसरे का सुकृत तथा चौथे का नाम धर्मवाही था। उसी काल में रत्नमा पर्वत पर दूषण नामक एक धर्मद्वेषी असुर ने ब्रह्माजी से वर प्राप्त करते ही वेद, धर्म और धर्मात्माओं पर आक्रमण किया। अन्त में दूषण ने सेना लेकर अवन्ती अर्थात् उज्जैन के ब्राम्हणों पर भी आक्रमण किया। दूषण के आदेश अनुसार चार भयावह दैत्य चारों दिशाओं से पलयाग्नि के समान प्रकट हो गये जिससे शिवभक्त ब्राह्मण भयभीत हो गए, तब ब्राह्मण पुत्रों ने समस्त ब्राह्मणों को यह आश्वासन दिया कि वह भगवान शिव पर विश्वास रखें तथा यह कहकर वे स्वयं शिवलिंग का पूजन करते हुए भगवान शिव के ध्यान में लीन हो गए।
इस दौरान ज्यों ही वह दुष्टात्मा दैत्यराज उन ब्राह्मणों को मारने चला त्यों ही उस शिवलिंग के स्थान पर एक गड्ढा हो गया तथा उसी गर्त से एक विकट रूपधारी शिवजी प्रकट हो गये। उन्होनें प्रकट होते ही अपने प्रचण्ड शब्द से सेना सहित उस दुष्ट दैत्य को अपनी एक हुंकार से ही भस्म कर दिया। तदनन्तर ब्रह्मा, विष्णु सहित समस्त देवताओं ने विविध स्तोत्रों से शिवजी की महाकाल रूप में स्तुति की। तभी से ब्राह्मणों की प्रार्थना पर लोकरक्षार्थ भगवान शिव वहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हुए।
शिव महापुराण के अनुसार महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से स्वप्न में भी कोई दुखः नहीं होता,जिस कामना से श्रद्धालु महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का दर्शन करता है उसका मनोरथ पूर्ण हो जाता है तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाकालेश्वर मंदिर प्रातः 4:00 से रात्रि 12:00 बजे तक पूजा-अर्चना हेतु खुला रहता है।
काशी में महाकालेश्वर मंदिर के-52/39, मृत्युंजय महादेव मंदिर परिसर में मैदागिन क्षेत्र में स्थित है। मंदिर दर्शन/यात्रा हेतु स्थानीय परिवहन उपलब्ध हैं।