काशी खंड के 49 वें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार, वासंतिक नवरात्रि के आठवें दिन मंगला गौरी की आराधना की जाती है जो माँ गौरी का आठवां स्वरूप है। उनका मंदिर पंचगंगा घाट क्षेत्र में स्थित है। भगवान सूर्य नें एक शिवलिंग तथा देवी गौरी की मूर्ति भी पंचनंदा तीर्थ (पंचगंगा घाट) पर स्थापित की और भगवान शिव की आराधना की। भगवान सूर्य की घोर तपस्या से आसपास के क्षेत्रों में भीषण गर्मी बढ़ने लगी। भगवान सूर्य का तेज दिन पर दिन बढ्ने लगा। अंततः सभी जीवित प्राणियों के लिए उस स्थान पर रहना असहज हो गया और क्षेत्र की वातावरणीय व पर्यावरणीय दशा को निवास के लिए बाधित करने लगा।
भगवान शिव एवं माता पार्वती को जब ये पता लगा तो वे साक्षात भगवान सूर्य के समक्ष प्रकट हुए। भगवान सूर्य नें अपनी आँखें खोलीं और भगवान शिव एवं माता पार्वती का यशगान प्रारंभ कर दिया जिससे दोनों ही अति प्रसन्न हुए और भगवान सूर्य को अनेकों दिव्य वरदान दिये।
भगवान शिव नें भगवान सूर्य से कहा कि गौरी माँ की जो मूर्ति उन्होने इस स्थान में प्रतिष्ठित की है, उन्हे मंगला गौरी के नाम से जाना जाएगा।
ऐसी मान्यता है कि मंगला गौरी के दर्शन मात्र से गृहस्थ जीवन में मांगलिक कार्य होते हैं।
मंदिर प्रातः 5:00 बजे से दोपहर 1:00 बजे तक, दोपहर 3:00 बजे से रात्रि 10:00 बजे तक खुला रहता है। आरती केवल शाम को होती है। आमतौर पर मंगलवार को यहाँ बहुत भीड़ होती है।
मंगला गौरी K-24/34, पंचगंगा घाट पर स्थित है। यात्रा हेतु स्थानीय वहाँ सुगमता से उपलब्ध है।