काशी खण्ड में वर्णित कथा के अनुसार वाराणसी में स्थित छप्पन विनायकों में से श्री गणेश का ढुण्ढिराज विनायक स्वरूप अष्ट प्रधान विनायक यात्रा में सम्मिलित है। अष्ट प्रधान विनायक यात्रा में उल्लेखित कथा के अनुसार जब भगवान गणेश राजा दिवोदास के राज्य में दोष ढूँढने में सफल हो गए तब वह अपनी अनेक मूर्तियों (छप्पन विनायकों) के रूप में वाराणसी में स्थित हो गये। तदुपरान्त भगवान विष्णु ने वचनानुसार राजा दिवोदास को उसके राज्य से उच्चाटित कर दिया तथा भगवान विश्वकर्मा द्वारा काशी के पुनः निर्माण के उपरांत भगवान विश्वनाथ समस्त देवगण के साथ स्वयं मन्दराचल से वाराणसी में आए । काशी में प्रवेश करते ही भगवान विश्वेश्वर ने प्रथमतः गणनायक की स्तुति की तथा ढुण्ढिराज स्तोत्र का उच्चारण करते हुये यह कहा कि यहाँ भगवान गणेश ढुण्ढिराज नाम से विख्यात होंगे तथा जो भक्त काशीपुरी में भगवान विश्वेश्वर से पूर्व ढुण्ढिराज विनायक का दर्शन-पूजन करेगा वह भगवान विश्वेश्वर का सम्पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त करने में सफल हो पायेगा। मान्यता अनुसार जो मनुष्य ढुण्ढिराज विनायक की नित्य आराधना करता है उसे कष्टों से मुक्ति मिलती तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है।
श्रद्धालुओं द्वारा दर्शन-पूजन हेतु मंदिर दिन भर खुला रहता है।
वाराणसी में ढुण्ढिराज विनायक श्री काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य द्वार-1 पर स्थित हैं।