अष्ट भैरव (आठ भैरव) भगवान काल भैरव के आठ स्वरूप हैं, जो कि भगवान शिव का एक रौद्र रूप है । जो सभी भैरवों के प्रमुख व काल के शासक माने जाते हैं। वे आठों दिशाओं की रक्षा एवं नियंत्रण करते हैं ।
अष्ट भैरव में से पाँच भैरव, पंच तत्वों यथा आकाश, वायु, जल, अग्नि और भूमि का प्रतिनिधित्व करते हैं और अन्य तीन सूर्य, चंद्र व आत्मा का। आठों भैरवों का स्वरूप एक दूसरे से भिन्न है, उनके वाहन व शस्त्र भी भिन्न हैं तथा वे अपने श्रद्धालुओं को अष्ट लक्ष्मी के रूप में आठ प्रकार की संपदाएँ देते हें । भैरव की निरंतर प्रार्थना श्रद्धालु को एक महागुरु बनने का मार्ग प्रशस्त करती है । आठों भैरवों के अलग अलग मूल मंत्र व ध्यान श्लोक हैं ।
सामान्यतः ये विश्वास किया जाता है कि भैरवों की उपासना करने से समृद्धि, सफलता, सुशील संतान, अकाल मृत्यु से बचाव तथा ऋण मुक्ति व उत्तरदायित्वों की कुशल निर्वहन क्षमता आदि की प्राप्ति होती है। भैरवों के विभिन्न स्वरूप भगवान शिव से विकसित हुए जो कि भैरव के रूप में अस्तित्व में आए। भैरव नाम स्वयं में एक गहरा अर्थ समेटे हुए है। इस नाम का प्रथम खंड अर्थात “भै” यानि भय अथवा दिव्य प्रकाश को इंगित करता है एवं इस नाम से साधक को धन की प्राप्ति होती है। “रव” का अर्थ “प्रतिध्वनि” है जिसमे “र” शब्द नकारात्मक परिणामों एवं प्रतिबंधों को दूर करने वाला है और “व” शब्द अवसरों को उत्पन्न करने का कार्य करता है। कुल मिलाकर, भैरव शब्द यह इंगित करता है कि यदि हम भय का प्रयोग करें तो हम ‘असीम आनंद’ को प्राप्त कर सकते हैं। भगवान शिव के मंदिरों में नियमित पूजा अर्चना सूर्योपासना से प्रारम्भ होकर भैरव वंदना के साथ समाप्त होती है। शुक्रवार की मध्यरात्रि भैरव पूजा के सर्वथा योग्य मानी जाती है।
भैरव सामान्यतः उत्तर या दक्षिण दिशा में स्थापित होते हैं। एक देवता के रूप में, भैरव सदैव चार भुजाओं के साथ खड़ी मुद्रा में प्रकट होते है अपने बाएं हाथों में डमरू और फंडा धारण करते हैं और अपने दाहिने हाथों पर त्रिशूल और मुंड धारण करते हैं।कभी कभी भैरव अधिक हाथों सहित प्रदर्शित किए जाते हैं। वह पूर्ण अथवा आंशिक नग्नवस्था में रहते हैं। उनका वाहन श्वान उनके साथ ही रहता है, जो कि मात्र एक वाहन ही नहीं अपितु भगवान भैरव के साथ उनकी भयावह गतिविधियों में उनका सहयोगी भी रहता है। भैरव अपने उभरे हुए दांतों की वजह से भयावह दिखते हैं। उनके गले में लाल फूलों की माला सुशोभित होती है।
स्थानीय लोगों के बीच श्री रूरु भैरव, गुरु भैरव अथवा आनंद भैरव के नाम से भी जाने जाते हैं, जोकि अपने श्रद्धालुओं को ज्ञानवृद्धि से समृद्ध करते हैं ताकि वे एक सफल जीवन जी सकें। शुद्ध धवल रूप जो आभूषणों व माणिकों से सुसज्जित है।
और देखेंश्री चंड भैरव अपने श्रद्धालुओं को अतुल्य ऊर्जा प्रदान करते हैं ताकि वे अपने प्रतिद्वंदियों पर विजय प्राप्त कर सकें। चंड भैरव अपनी मूर्तियों में नीली त्वचा वाले एवं सौन्दर्य वान प्रदर्शित किए जाते हैं।
और देखेंश्री असितांग भैरव अपने श्रद्धालुओं को आशीष देते है जिससे वे रचनात्मक क्षमताओं को प्राप्त कर सकें। स्वर्णिम रंग रूप, सुगठित शरीर, त्रिशूल , डमरू व खड्ग लिए श्रद्धालुओं को रचनात्मक योग्यता प्रदान करते हैं।
और देखेंक्रोधन भैरव आदि भैरव के नाम से जाने जाते हैं और अपने श्रद्धालुओं को बल व साहस देते हैं ताकि वे बड़ी सफलताएँ अर्जित कर सकें। वे अपनी मूर्तियों में धुएँ के रंग में प्रदर्शित किए जाते हैं तथा खड्ग व ढाल धारण किए रहते हैं।
और देखेंश्री कपाल भैरव अपने श्रद्धालुओं को केवल फलदायी कार्यों के विषय में ही सोचने व करने में सहायता करते हैं। मूर्तियों में जो पीली त्वचा में प्रदर्शित किए जाते हैं, कुंड जिनका शस्त्र है, जो परीघा लौह गदाधारी हैं
और देखेंश्री सँहार भैरव पूर्व में किए गए सभी पापों से मुक्ति पाने में सहायक हैं। यह माना जाता है कि सँहार भैरव यहाँ भैरव क्षेत्र से आए हैं और उनका ये अवतार श्रद्धालुओं के पापों का सँहार करता है जो उनकी आराधना करते हैं।
और देखेंश्री उन्मत्त भैरव अपने श्रद्धालुओं को हानिकारक तत्त्वों को नियंत्रित करने में सहायता करते हैं जो उन पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। धवल रूप में, कुंड को शस्त्र के रूप में धारण किए हुए हैं
और देखेंश्री भीषण भैरव अपने श्रद्धालुओं को दुष्ट आत्माओं और नकारात्मक प्रभावों से बचाते हैं। जो लाल त्वचा वाले हैं, कुंड को शस्त्र के रूप में धारण करते हैं, लौह गदाधारी हैं, खटक धारण किए हैं, परीघा लौह गदा एवं भिण्डीप्ला अंकुश से युक्त हैं। हैं।
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